Rudrabhishek puja dates july 2019 (रुद्राभिषेक करने की तिथियां 2019) / Rudrabhishek Muhurat in 2019 (रुद्राभिषेक मुहूर्त 2019) / रुद्राभिषेक महूर्त (Rudrabhishek Mahurat) / Rudrabhishek in Sawan
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Rudrabhishek Tithi (रुद्राभिषेक तिथि) / Rudrabhishek Dates / Rudrabhishek Time
Rudrapaathi रुद्रपाठी
रुद्राभिषेक में शिव निवास का विचार | शिव वास विचार | शिव वास विचार /Shiv vas vichar |रुद्राभिषेक महूर्त /Rudrabhishek Mahurt | शिववास तिथि एवं फल/Shiv vaas tithi evam fal| शिव वास ज्ञान | शिवार्चन और शिव निवास | शिव वास देखने की विधि | शिव वास तिथि | शिव वास मुहूर्त | Shiv vas | Shiv nivas | Shiv vaas vichar in Rudrabhishek | Rudrabhishek Muhurat |शिव वास विचार /Shiv vas vichar |रुद्राभिषेक महूर्त /Rudrabhishek Mahurt | शिववास तिथि एवं फल/Shiv vaas tithi
शिव वास विचार - शिव वास ज्ञान:
· शिव वास से पता चलता है कि उस समय भगवान शिव क्या कर रहे हैं, उनसे प्रार्थना का कौन सा समय उचित है |
· ऐसे अनुष्ठान जिन्हें स्वीकारना भगवान शिव की भक्ति विवशता होती है उनमें शिव वास देखा जाना अनिवार्य होता है, रुद्राभिषेक, शिवार्चन, महामृत्युंजय अनुष्ठान सहित शिव जी के कई अचूक अनुष्ठान होते हैं,
उनकी प्रार्थनायें और उर्जायें भगवान शिव तक पहुंचती ही हैं. इनके लिये पहले से पता कर लें कि शिव जी उस समय क्या कर रहे हैं.
उनकी प्रार्थनायें और उर्जायें भगवान शिव तक पहुंचती ही हैं. इनके लिये पहले से पता कर लें कि शिव जी उस समय क्या कर रहे हैं.·
कहा जाता है भोलेनाथ अपने भक्तों की भक्ति से विवश होकर हर समय उनकी प्रार्थनायें पूरी करने में जुटे रहते थे, जिससे ब्रह्मांड के कामकाज प्रभावित होने लगे |
· नारद ऋषि द्वारा रचित शिव वास देखने का फार्मूला समझ लें. उसके अनुसार शिव वास का विचार करें |
“तिथिं च द्धिगुणीकृत्य पंचभिश्च समव्रितम।।
सप्तभिस्तुहरेभ्दिग्मशेषं शिव वस् उच्चयते।।
एके कैलाश वासंद्धितीये गौरिनिधौ।।
तृतीये वृषभारूढं चतुर्थे च सभास्थित।
पंचमेंभोजने चैव क्रीड़ायान्तुसात्मके शून्येश्मशानके चैव शिववास वास संचयोजयेत।।“
वर्तमान तिथि को २ से गुणा करके पांच जोड़ें फिर ७ का भाग दें . शेष १ रहे तो शिव वास कैलाश में, २ से गौरी पाशर्व में, ३ से वृषारूड़ श्रेष्ठ, ४ से सभा में सामान्य एवं ५ से ज्ञानबेला में श्रेष्ठ होता है. यदि शेष ६ रहे तो क्रीड़ा में तथा शून्य से शमशान में अशुभ होता है. तिथि की गणना शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से करनी चाहिए. शिवार्चन के लिए शुभ तिथियाँ शुक्ल पक्ष में २,५,६,७,९,१२,१३,१४ और कृष्ण पक्ष में १,४,५,६,८,११,१२,१३,३०
शिववास फलम :-
“कैलाशे च भवेत्सुरुयंगौर्यायांतु शम्भु वदेत।।
वृषभेयश्रिय: प्राप्ति: सभायां वद्ध्रतीकुलम।।
भोजनस्च्वे क्रीड़ा संतपकारक: श्मशानेतुभवेंमृत्यु: शिववास सफलं वदेत।।“
अर्थात ज्योतिष गणनानुसार तिथि को दुगनी करके उसमें 5 को छोड़ दें, फिर 7 के भाग से शेष जो अंक बचे उसके आधार पर शिव निवास ज्ञात करें। 1 आने पर जानिए कि भोलेनाथ कैलाश पर निवास कर रहे हैं, 2 में वे गौरी के साथ हैं, 3 में वृषभ पर विराजमान हैं, 4 में सभा में स्थित हैं, 5 में भोजन कर रहे हैं, 6 में क्रीड़ा में हैं, शून्य में श्मशान में निवास कर रहे हैं।
शिव-वास
· यह ध्यान रहे कि शिव-वास का विचार सकाम अनुष्ठान में ही जरूरी है... निष्काम भाव से की जाने वाली अर्चना कभी भी हो सकती है |
· ज्योतिíलंग-क्षेत्र एवं तीर्थस्थान में तथा शिवरात्रि-प्रदोष, सावन के सोमवार आदि पर्वो में शिव-वास का विचार किए बिना भी रुद्राभिषेक किया जा सकता है |
· रुद्राभिषेक से सारे पाप-ताप-शाप धुल जाते हैं, कृष्णपक्ष की सप्तमी, चतुर्दशी तथा शुक्लपक्ष की प्रतिपदा,
· अष्टमी, पूर्णिमा में भगवान महाकाल श्मशान में समाधिस्थ रहते हैं। अतएव इन तिथियों में किसी कामना
· की पूर्ति के लिए किए जाने वाले रुद्राभिषेक में आवाहन करने पर उनकी साधना भंग होती है जिससे
· अभिषेककर्ता पर विपत्ति आ सकती है। कृष्णपक्ष की द्वितीया, नवमी तथा शुक्लपक्ष की तृतीया व दशमी में महादेव देवताओं की सभा में उनकी समस्याएं सुनते हैं। इन तिथियों में सकाम अनुष्ठान करने पर संताप या दुख मिलता है।
· कृष्णपक्ष की तृतीया, दशमी तथा शुक्लपक्ष की चतुर्थी व एकादशी में सदाशिव क्रीडारत रहते हैं। इनतिथियों में सकाम रुद्रार्चन संतान को कष्ट प्रदान करते है।
· कृष्णपक्ष की षष्ठी, त्रयोदशी तथा शुक्लपक्ष की सप्तमी व चतुर्दशी में रुद्रदेव भोजन करते हैं। इन तिथियों मेंसांसारिक कामना से किया गया रुद्राभिषेक पीडा देते हैं।
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२. आपके माता पिता का नाम (Your Parent's Name)
३. आपके परिवार के अन्य सदस्यों का नाम (Name of other family members who want to get benefit)
४. आपका गोत्र (Your Gotra. If you know it is ok otherwise no need to send)
५. आपका एक फोटोग्राफ (Your latest photograph)
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रुद्राभिषेक में शिव निवास का विचार
किसी कामना, ग्रहशांति आदि के लिए किए जाने वाले रुद्राभिषेक में शिव निवास का विचार करने पर ही अनुष्ठान सफल होता है और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। प्रत्येक मास की तिथियों के अनुसार जब शिव निवास गौरी पार्श्व में, कैलाश पर्वत पर, नंदी की सवारी एवं ज्ञान वेला में होता है तो रुद्राभिषेक करने से सुख-समृद्धि, परिवार में आनंद मंगल और अभीष्ट सिद्धि की प्राप्ति होती है। "परन्तु शिव वास श्मशान, सभा अथवा क्रीड़ा में हो तो उन तिथियों में शिवार्चन करने से महा विपत्ति, संतान कष्ट व पीड़ादायक होता है।"
रुद्राभिषेक करने की तिथियां-
कृष्णपक्ष की प्रतिपदा, पंचमी, अष्टमी, एकादशी, द्वादशी, अमावस्या, शुक्लपक्ष की द्वितीया, पंचमी, षष्ठी, नवमी, द्वादशी, त्रयोदशी तिथियों में अभिषेक करने से सुख-समृद्धि संतान प्राप्ति एवं ऐश्वर्य प्राप्त होता है। कालसर्प योग, गृहकलेश, व्यापार में नुकसान, शिक्षा में रुकावट सभी कार्यो की बाधाओं को दूर करने के लिए रुद्राभिषेक आपके अभीष्ट सिद्धि के लिए फलदायक है। किसी कामना से किए जाने वाले रुद्राभिषेक में शिव-वास का विचार करने पर अनुष्ठान अवश्य सफल होता है और मनोवांछित फल प्राप्त होता है।
शिव वास कब कहा
1. प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा, अष्टमी, अमावस्या तथा शुक्लपक्ष की द्वितीया व नवमी के दिन भगवान शिव माता गौरी के साथ होते हैं, इस तिथि में रुद्राभिषेक करने से सुख-समृद्धि उपलब्ध होती है।
2. कृष्णपक्ष की चतुर्थी, एकादशी तथा शुक्लपक्ष की पंचमी व द्वादशी तिथियों में भगवान शंकर कैलाश पर्वत पर होते हैं और उनकी अनुकंपा से परिवार में आनंद-मंगल होता है।
3. कृष्णपक्ष की पंचमी, द्वादशी तथा शुक्लपक्ष की षष्ठी व त्रयोदशी तिथियों में महादेव नंदी पर सवार होकर संपूर्ण विश्व में भ्रमण करते है।अत: इन तिथियों में रुद्राभिषेक करने पर अभीष्ट सिद्ध होता है।
4. कृष्णपक्ष की सप्तमी, चतुर्दशी तथा शुक्लपक्ष की प्रतिपदा, अष्टमी, पूर्णिमा में भगवान महाकाल श्मशान में समाधिस्थ रहते हैं। अतएव इन तिथियों में किसी कामना की पूर्ति के लिए किए जाने वाले रुद्राभिषेक में आवाहन करने पर भगवान शिव की साधना भंग होती है, जिससे अभिषेककर्ता पर विपत्ति आ सकती है।
5. कृष्णपक्ष की द्वितीया, नवमी तथा शुक्लपक्ष की तृतीया व दशमी में महादेव देवताओं की सभा में उनकी समस्याएं सुनते हैं। इन तिथियों में सकाम अनुष्ठान करने पर संताप या दुख मिलता है।
6. कृष्णपक्ष की तृतीया, दशमी तथा शुक्लपक्ष की चतुर्थी व एकादशी में सदाशिव क्रीडारत रहते हैं। इन तिथियों में सकाम रुद्रार्चन संतान को कष्ट प्रदान करते है।
7. कृष्णपक्ष की षष्ठी, त्रयोदशी तथा शुक्लपक्ष की सप्तमी व चतुर्दशी में रुद्रदेव भोजन करते हैं। इन तिथियों में सांसारिक कामना से किया गया रुद्राभिषेक पीडा देते हैं। इसके अतिरिक्त ज्योर्तिलिंग-क्षेत्र एवं तीर्थस्थान में तथा शिवरात्रि-प्रदोष, श्रावण के सोमवार आदि पर्वो में शिव-वास का विचार किए बिना भी रुद्राभिषेक किया जा सकता है। वस्तुत: शिवलिंग का अभिषेक आशुतोष शिव को शीघ्र प्रसन्न करके साधक को उनका कृपा पात्र बना देता है और उनकी सारी समस्याएं स्वत: समाप्त हो जाती हैं।
अतः हम यह कह सकते हैं कि रुद्राभिषेक से मनुष्य के सारे पाप-ताप धुल जाते हैं। स्वयं श्रृष्टि कर्ता ब्रह्मा ने भी कहा है की जब हम अभिषेक करते है तो स्वयं महादेव साक्षात् उस अभिषेक को ग्रहण करते है।
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विभिन्न प्रकार के अभिषेक का फल:-
ऐसे तो अभिषेक साधारण रूप से जल से ही होता है । परन्तु विशेष अवसर पर या सोमवार, प्रदोष और शिवरात्रि आदि पर्व के दिनों मंत्र गोदुग्ध से विशेष रूप से अभिषेक किया जाता है । विशेष पूजा में दूध, दही, घृत, शहद और चीनी से अलग-अलग अथवा सब को मिला कर पंचामृत से भी अभिषेक किया जाता है। तंत्रों में रोग निवारण हेतु अन्य विभिन्न वस्तुओं से भी अभिषेक करने का विधान है। इस प्रकार विविध द्रव्यों से शिवलिंग का विधिवत् अभिषेक करने पर अभीष्ट कामना की पूर्ति होती है। इसमें कोई संदेह नहीं कि किसी भी पुराने नियमित रूप से पूजे जाने वाले शिवलिंग का अभिषेक बहुत ही उत्तम फल देता है। किन्तु यदि पारद , स्फटिक , नर्मदेश्वर, अथवा पार्थिव शिवलिंग का अभिषेक किया जाय तो बहुत ही शीघ्र चमत्कारिक शुभ परिणाम मिलता है । रुद्राभिषेक का फल बहुत ही शीघ्र प्राप्त होता है ।
शिव पुराण के अनुसार रुद्राभिषेक किस द्रव्य से अभिषेक करने से क्या फल मिलता है अर्थात आप जिस उद्देश्य की पूर्ति हेतु रुद्राभिषेक करा रहे है उसके लिए किस- किस द्रव्य का इस्तेमाल करना चाहिए का उल्लेख शिव पुराण में किया गया है इसका सविस्तार विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है :-
"जलेन वृष्टिमाप्नोति व्याधिशांत्यै कुशोदकै
दध्ना च पशुकामाय श्रिया इक्षुरसेन वै।
मध्वाज्येन धनार्थी स्यान्मुमुक्षुस्तीर्थवारिणा।
पुत्रार्थी पुत्रमाप्नोति पयसा चाभिषेचनात।।
बन्ध्या वा काकबंध्या वा मृतवत्सा यांगना।
जवरप्रकोपशांत्यर्थम् जलधारा शिवप्रिया।।
घृतधारा शिवे कार्या यावन्मन्त्रसहस्त्रकम्।
तदा वंशस्यविस्तारो जायते नात्र संशयः।
प्रमेह रोग शांत्यर्थम् प्राप्नुयात मान्सेप्सितम।
केवलं दुग्धधारा च वदा कार्या विशेषतः।
शर्करा मिश्रिता तत्र यदा बुद्धिर्जडा भवेत्।
श्रेष्ठा बुद्धिर्भवेत्तस्य कृपया शङ्करस्य च!!
सार्षपेनैव तैलेन शत्रुनाशो भवेदिह!
पापक्षयार्थी मधुना निर्व्याधिः सर्पिषा तथा।।
जीवनार्थी तू पयसा श्रीकामीक्षुरसेन वै।
पुत्रार्थी शर्करायास्तु रसेनार्चेतिछवं तथा।
महलिंगाभिषेकेन सुप्रीतः शंकरो मुदा।
कुर्याद्विधानं रुद्राणां यजुर्वेद्विनिर्मितम्।"
अर्थात - जल से रुद्राभिषेक करने पर — वृष्टि होती है कुशा जल से अभिषेक करने पर — रोग, दुःख से छुटकारा मिलती है। दही से अभिषेक करने पर — पशु, भवन तथा वाहन की प्राप्ति होती है। गन्ने के रस से अभिषेक करने पर — लक्ष्मी प्राप्ति मधु युक्त जल से अभिषेक करने पर — धन वृद्धि के लिए। तीर्थ जल से अभिषेकक करने पर — मोक्ष की प्राप्ति होती है। इत्र मिले जल से अभिषेक करने से — बीमारी नष्ट होती है ।दूध् से अभिषेककरने से — पुत्र प्राप्ति,प्रमेह रोग की शान्ति तथा मनोकामनाएं पूर्ण गंगाजल से अभिषेक करने से — ज्वर ठीक हो जाता है। दूध् शर्करा मिश्रित अभिषेक करने से — सद्बुद्धि प्राप्ति हेतू। घी से अभिषेक करने से — वंश विस्तार होती है। सरसों के तेल से अभिषेक करने से — रोग तथा शत्रु का नाश होता है।शुद्ध शहद रुद्राभिषेक करने से —- पाप क्षय हेतू।
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1. जल से अभिषेक करने पर वर्षा होती है।
2. असाध्य रोगों को शांत करने के लिए कुशोदक से रुद्राभिषेक करें।
दध्ना च पशु कामाय श्रिया इक्षु रसेन च । मध्वाज्येन धनार्थी स्यान्मुमुक्षुस्तीर्थ वारिणः ।।
3. भवन-वाहन के लिए दही से रुद्राभिषेक करें। लक्ष्मी प्राप्ति के लिये गन्ने के रस से रुद्राभिषेक करें।
4. धन-वृद्धि के लिए शहद एवं घी से अभिषेक करें।
5. तीर्थ के जल से अभिषेक करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है।
6. पुत्र प्राप्ति के लिए दुग्ध से और यदि संतान उत्पन्न होकर मृत पैदा हो तो गोदुग्ध से रुद्राभिषेक करें। रुद्राभिषेक से योग्य तथा विद्वान संतान की प्राप्ति होती है।
7. ज्वर की शांति हेतु शीतल जल/गंगाजल से रुद्राभिषेक करें।
8. सहस्रनाम-मंत्रों का उच्चारण करते हुए घृत की धारा से रुद्राभिषेक करने पर वंश का विस्तार होता है।
9. प्रमेह रोग की शांति भी दुग्धाभिषेक से हो जातीहै।
10. शक्कर मिले दूध से अभिषेक करने पर जडबुद्धि वाला भी विद्वान हो जाता है।
11. सरसों के तेल से अभिषेक करने पर शत्रु पराजित होता है।
12. शहद के द्वारा अभिषेक करने पर यक्ष्मा (तपेदिक) दूर हो जाती है।
13. पातकों को नष्ट करने की कामना होने पर भी शहद से रुद्राभिषेक करें।
14. गो दुग्ध से तथा शुद्ध घी द्वारा अभिषेक करने से आरोग्यता प्राप्त होती है।
15. पुत्र की कामनावाले व्यक्ति शक्कर मिश्रित जल से अभिषेक करें।
कब रुद्राभिषेक करें, कब न करें ?
शिव और रुद्र परस्पर पर्यायवाची शब्द हैं। शिव को रुद्र इसलिए कहा जाता है-
“रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीति रुद्र:”
ये दु:खों को नष्ट कर देते हैं। सब धर्मग्रंथों का यह साफ-साफ कहना है कि हमारे द्वारा किए गए पाप ही हमारे दु:खों के कारण हैं। रुद्रार्चनऔर रुद्राभिषेक से पातक भस्म हो जाते हैं और साधक में शिवत्व का उदय होता है। रुद्र के पूजन से सब देवताओं की पूजा स्वत:सम्पन्न हो जाती है।
“रुद्रहृदयोपनिषद्में लिखा है-सर्वदेवात्मको रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका:।“
लेकिन, रुद्राभिषेक से पहले यह जानना आवश्यक है, कि किस तिथि को शिव जी का वास कहाँ होता है. सही समय पर किया हुआ रुद्राभिषेक ही वांछित फल देता है-
कब करें रुद्राभिषेक ?
ü प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा (1), अष्टमी (8), अमावस्या तथा शुक्लपक्ष की द्वितीया (2)व नवमी (9) के दिन भगवान शिव माता गौरी के साथ होते हैं, इस तिथि में रुद्राभिषेक करने से सुख-समृद्धि उपलब्ध होती है।
ü कृष्णपक्ष की चतुर्थी (4), एकादशी (11) तथा शुक्लपक्ष की पंचमी (5) व द्वादशी (12) तिथियों में भगवान शंकर कैलास पर्वत पर होते हैं और उनकी अनुकंपा से परिवार में आनंद-मंगल होता है।
ü कृष्णपक्ष की पंचमी (5), द्वादशी (12) तथा शुक्लपक्ष की षष्ठी (6)व त्रयोदशी (13) तिथियों में भोलेनाथनंदी पर सवार होकर संपूर्ण विश्व में भ्रमण करते हैं।
ü अत: इन तिथियों में रुद्राभिषेक करने पर अभीष्ट सिद्ध होता है।
कब न करें ?
Ø कृष्णपक्ष की सप्तमी (7), चतुर्दशी (14) तथा शुक्लपक्ष की प्रतिपदा (1), अष्टमी (8), पूíणमा (15) में भगवान महाकाल श्मशान में समाधिस्थ रहते हैं अतएव इन तिथियों में किसी कामना की पूíत के लिए किए जाने वाले रुद्राभिषेक में आवाहन करने पर उनकी साधना भंग होगी। इससे यजमान पर महाविपत्तिआ सकती है। 5. 5. कृष्णपक्ष की द्वितीया (2), नवमी (9) तथा शुक्लपक्ष की तृतीया (3) व दशमी (10) में महादेवजीदेवताओं की सभा में उनकी समस्याएं सुनते हैं। इन तिथियों में सकाम अनुष्ठान करने पर संताप (दुख) मिलेगा।
Ø कृष्णपक्ष की तृतीया (3), दशमी (10) तथा शुक्लपक्ष की चतुर्थी (4) व एकादशी (11)में नटराज क्रीडारतरहते हैं। इन तिथियों में सकाम रुद्रार्चनसंतान को कष्ट दे सकता है।
Ø कृष्णपक्ष की षष्ठी (6), त्रयोदशी (13) तथा शुक्लपक्ष की सप्तमी (7) व चतुर्दशी (14) में रुद्रदेवभोजन करते हैं। इन तिथियों में सांसारिक कामना से किया गया रुद्राभिषेक पीडा दे सकता है।
नोट: -
1. शिव-वास का विचार सकाम अनुष्ठान में ही जरूरी है। निष्काम भाव से की जाने वाली अर्चना कभी भी हो सकती है।
2. ज्योतिíलंग-क्षेत्र एवं तीर्थस्थान में तथा शिवरात्रि-प्रदोष, सावन के सोमवार आदि पर्वो में शिव-वास का विचार किए बिना भी रुद्राभिषेक किया जा सकता है।
शिववास चक्र :-
शुक्ल पक्ष
|
कृष्ण पक्ष
| ||||
तिथि
|
शिववास
|
फल
|
तिथि
|
शिववास
|
फल
|
प्रथमा
|
शमशान
|
मृत्युतुल्य
|
प्रथमा
|
गौरी सानिध्य
|
सुखप्रद
|
द्वितीया
|
गौरी सानिध्य
|
सुखप्रद
|
द्वितीया
|
सभायां
|
संताप
|
तृतीया
|
सभायां
|
संताप
|
तृतीया
|
क्रीडायां
|
कष्ट एवं दुःख
|
चतुर्थी
|
क्रीडायां
|
कष्ट एवं दुःख
|
चतुर्थी
|
कैलाश पर
|
सुखप्रद
|
पंचमी
|
कैलाश पर
|
सुखप्रद
|
पंचमी
|
वृषारूढ
|
अभीष्टसिद्धि
|
षष्ठी
|
वृषारूढ
|
अभीष्टसिद्धि
|
षष्ठी
|
भोजन
|
पीड़ा
|
सप्तमी
|
भोजन
|
पीड़ा
|
सप्तमी
|
शमशान
|
मृत्युतुल्य
|
अष्टमी
|
शमशान
|
मृत्युतुल्य
|
अष्टमी
|
गौरी सानिध्य
|
सुखप्रद
|
नवमी
|
गौरी सानिध्य
|
सुखप्रद
|
नवमी
|
सभायां
|
संताप
|
दशमी
|
सभायां
|
संताप
|
दशमी
|
क्रीडायां
|
कष्ट एवं दुःख
|
एकादशी
|
क्रीडायां
|
कष्ट एवं दुःख
|
एकादशी
|
कैलाश पर
|
सुखप्रद
|
द्वादशी
|
कैलाश पर
|
सुखप्रद
|
द्वादशी
|
वृषारूढ
|
अभीष्टसिद्धि
|
त्रयोदशी
|
वृषारूढ
|
अभीष्टसिद्धि
|
त्रयोदशी
|
भोजन
|
पीड़ा
|
चतुर्दशी
|
भोजन
|
पीड़ा
|
चतुर्दशी
|
शमशान
|
मृत्युतुल्य
|
पूर्णिमा
|
शमशान
|
मृत्युतुल्य
|
अमावस्या
|
गौरी सानिध्य
|
सुखप्रद
|
शिवार्चन व रुद्राभिषेक के लिए प्रत्येक माह की शुभ तिथियां इस प्रकार हैं- कृष्णपक्ष में 1, 4, 5, 6, 8, 11, 12, 13 व अमावस्या। शुक्लपक्ष में 2, 5, 6, 7, 9, 12, 13, 14 तिथियां शुभ हैं। शिव निवास का विचार सकाम अनुष्ठान में ही जरुरी है। निष्काम भाव से की जाने वाली अर्चना कभी भी हो सकती है। ज्योतिलिंग क्षेत्र एवं तीर्थस्थान में तथा शिवरात्रि, प्रदोष, सावन सोमवार आदि पर्वों में शिव वास का विचार किए बिना भी रुद्राभिषेक (जलाभिषेक) किया जा सकता है।
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Rudrabhishek Pandit/Pundit (रुद्राभिषेक पंडित) | Rudrabhishek Pujan (रुद्राभिषेक पूजन ) | Call Now +91-8602947815
Those who want to get Rudrabhishek done on behalf of themselves or for their family members or relatives send us below details)
जो लोग स्वयं के लिए या अपने किसी परिचित के लिए रुद्राभिषेक करवाना चाहते हैं लेकिन किसी कारण आप उसमे स्वयं उपस्थित नहीं हो सकते तो हम आपके नाम से यह पाठ करा सकते हैं। इसके लिए आप हमें नीचे लिखी जानकारी भेजें |
१. आपका नाम ( Your Name )
२. आपके माता पिता का नाम (Your Parent's Name)
३. आपके परिवार के अन्य सदस्यों का नाम (Name of other family members who want to get benefit)
४. आपका गोत्र (Your Gotra. If you know it is ok otherwise no need to send)
५. आपका एक फोटोग्राफ (Your latest photograph)
६. आपका पता जहां पूजा का प्रसाद आपको भेजा जायेगा। (Your address where we will send pooja prasaad)
इस संपूर्ण पूजा का शुल्क Rs 3100 है जिसे आप नीचे लिखे अकाउंट में जमा करा सकते हैं।
(You can deposit Rs 3100/- in below account)
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916010026477542
IFSC Code UTIB0000568
अधिक जानकारी के लिए हमें संपर्क करें +91-8602947815
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